कर्मचारी बीमा अदालत

           राज्य सरकार अधिनियम की धरा 74 के तहत शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा स्थानीय क्षेत्रों के लिए कर्मचारी बीमा न्यायालय का गठन करेगी । कोई भी व्यक्ति जो न्यायिक अधिकारी है अथवा रहा है अथवा जिसने पांच वर्ष तक अधिवक्ता के रूप में कार्य किया हो,कर्मचारी बीमा न्यायालय का न्यायाधीश होने के लिए या बनने के लिए योग्य होगा । अधिनियम की धारा ए(2) के तहत कर्मचारी बीमा न्यायालय चिकित्सा बोर्ड/ चिकित्सा अपीलीय न्यायाधिकरण के निर्णय के खिलाफ सुनवाई करता है ।

 

         बीमाकृत व्यक्ति अथवा निगम अधिनियम अधिनियम की धारा 54 ए के तहत और क.रा.बी.(केंद्रीय) नियम 1950 के नियम 20 बी के तहत कर्मचारी बीमा न्यायालय में अपील कर सकते हैं । यह अपील चिकित्सा बोर्ड/विशेष चिकित्सा बोर्ड अथवा कर्मचारी बीमा न्यायालय,जो भी स्थिति हो,का निर्णय बीमाकृत व्यक्ति अथवा निगम को मिलने की तारीख से 3 महीने के अन्दर एक आवेदन देकर की जा सकती है ।

 

         कर्मचारी बीमा न्यायालय यदि इस बात से संतुष्ट हो कि आवेदनकर्ता के पास उक्त अवधि के अन्दर आवेदन प्रस्तुत न करने हेतु पर्याप्त कारण है तो तीन महीने कि अवधि के बाद भी आवेदन स्वीकार कर सकता है ।

 

         कर्मचारी बीमा न्यायालय में आवेदन प्रस्तुत करते समय उक्त प्रयोजन हेतु प्रस्तुत किये जाने वाले आवेदनों के लिए राज्य सरकार द्वारा बनाये गए नियमों में उल्लिखित प्रारूप और तौर तरीकों का पालन किया जायेगा ।

 

       अधिनियम कि धारा 82 के तहत यदि कानून की व्याख्या से सम्बंधित कोई महत्वपूर्ण प्रश्न जुड़ा हो तो कर्मचारी बीमा न्यायालय के विरुद्ध अपील उच्च न्यायालय में की जा सकती है । यह अपील 60 दिन की समय सीमा के अन्दर की जानी चाहिए ।

 

 

कर्मचारी राज्य बीमा न्यायालय द्वारा विचारणीय मामले :

 

(1) (ए) क्या कोई व्यक्ति इस अधिनियम के तात्पर्य से कर्मचारी है या वह कर्मचारी का अंशदान देने के लिए उत्तरदायी है, या

 

(बी) इस अधिनियम के उद्देश्य के लिए किसी कर्मचारी की मजदूरी या औसत दैनिक मजदूरी की दर, या

 

(सी) किसी भी कर्मचारी के लिए नियोक्ता द्वारा देय अंशदान की दर, या

 

(डी) कोई व्यक्ति किसी कर्मचारी के संबंध में मुख्य नियोक्ता है या था, या

 

(ई) किसी व्यक्ति का किसी हितलाभ का अधिकार तथा उसकी राशि और अवधि, या

 

[(ईई) धारा 55-ए के अंतर्गत, आश्रितों के हितलाभ के भुगतान के पुनरावलोकन पर निगम द्वारा दिशा-निर्देश, या]

 

[(एफ*)]

 

(जी) अन्य कोई भी मामला, जो मुख्य नियोक्ता और निगम के बीच, या मुख्य नियोक्ता और आसन्न या तात्कालिक नियोक्ता के बीच, या किसी व्यक्ति या निगम के बीच, या किसी कर्मचारी और मुख्य नियोक्ता या आसन्न नियोक्ता के बीच, इस अधिनियम के अंतर्गत अंशदान या हितलाभ या अन्य बकाया देय या वसूली योग्य राशि विवादित हो [**या इस अधिनियम के अंतर्गत अन्य कोई मामला], संबंधी प्रश्न या विवाद यदि उठता है तो, ऐसे प्रश्न या विवाद, [उपधारा 2-ए एक प्रावधानों के अधीन रहते हुए] कर्मचारी बीमा न्यायालय द्वारा इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार निर्णीत किए जाएंगे ।

 

* 1996 के 44वें अधिनियम के द्वारा उपखण्ड (एफ) हटाया गया (28-1-1968 से प्रभावी)

 

** 1966 के 44वें अधिनियम के द्वारा प्रतिस्थापित (28-1-1968 से प्रभावी)